Last modified on 17 नवम्बर 2023, at 00:26

तालाब हैं अनेकों / हरिवंश प्रभात

तालाब हैं अनेको सब में कमल कहाँ है,
तालाब नाम का है उसमें भी जल कहाँ है।

आकर दिलों में बस जा और प्यास भी बुझा ले,
रहने को अब यहाँ पर कोई महल कहाँ है।

जीना बहुत कठिन है, दुश्मन बना ज़माना,
जीवन का पथ सरल हो, इसकी पहल कहाँ है।

करना है जो भी कर लो, यह क़ीमती समय है,
यह बात भी हक़ीक़त आता भी कल कहाँ है।

उड़ते हुए परिंदों से कुछ सबक भी सीखो,
उड़ना है आसमाँ में पर आत्मबल कहाँ है।

तुमको मुकाबला भी करना है ख़ूब डटकर,
तूफ़ान हो या आँधी कोई असल कहाँ है।

क़ानून पर चलोगे मिल जाएगी सफलता,
क़ानून तोड़ कर वह होता सफल कहाँ है।

जिस पर किया भरोसा वह ख़्वाब सुनहरा था,
जो था सवाल अनबूझ होता वह हल कहाँ है।