देखती है बच्ची
तितली के रंग
दौड़ती संग-संग
एक टक निहारती
सुंदर पँख
कितने कितने रंग
जैसे इन्द्रधनुष
जैसे मोरपंख
उड़ती तितली पंख पसारती
समेटती फिर खोलती
धीरे-धीरे-धीरे
फूल-फूल पर बैठती।
मेरा सारा रंग एक-सा
रंग देती मैडम पूरा चेहरा
जब बनाती परी
फिर भी माँ कहती
मैं हूँ सब से सुंदर
तितली से भी
मुझे इतने रंग क्यूं नहीं दिए माँ।
बेटी, आकाश का रंग एक-सा
मिट्टी का रंग एक-सा
देखो, पानी का तो
कोई रंग ही नहीं
इसलिए तुम सबसे सुंदर
तितली से भी
झाँको तो सही अपने अंदर।