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तितली से / बालकृष्ण गर्ग

-’तितली रानी! चलीं कहाँ?’
-’जहाँ फूल, मैं चली वहाँ’।
-’फूलों से है क्या नाता?’।
-’उनका रस मुझको भाता’।
[जनसत्ता, 27 अक्तूबर 1996]


-’रंग-बिरंगी प्यारी तितली,
क्यों हो इतनी दुबली-पतली?’
-’कुदरत की मैं सुंदर रचना,
मोटापे से मुझको बचना’।
[रचना: 26 जून 1998]