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तन मेरा कमजोर भले हो, लेकिन मन कमजोर नहीं,
मेरे गीत हृदय बहलाने वाला, केवल शोर नहीं।
क्योंकि अदालत में दुनिया की मैं भी एक वकील हूँ,
पर जो सच्चाई खा जाये, ऐसा आदमखोर नहीं।
परिचय मेरा मत पूछो तुम, ऐसा एक उसूल हूँ,
शायद जो कि कई लोगों को होता नहीं कबूल हूँ।
इसीलिए ही इसी तरह मैं दोषी भी कहला रहा,
गलत मनुज को चुभता कांटा, सही मनुज को फूल हूँ।
जिसका खून पसीना बन कर, जीता है संसार में,
जो तुमको तट पर पहुँचा कर डूबा ख़ुद मँझधार में।
श्रम के चोरों सँभलो अब तुम उसका भी युग आ रहा,
वरना कल रोटी माँगोगे, तुम उसके दरबार में।