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तीर्थयात्रा / नंदकिशोर आचार्य


सूज गये हैं पाँव
थकन से टूट रहा है पोर-पोर
धौंकनी-से हाँफते हैं प्राण।

किन्तु हाँफती दो साँसों
और घिसटते दो पाँवों के बीच
गूँजती है आत्मा की विकलता
बहती नदी-सी .......

डूब कर नहाता हूँ थका-हारा
फिर से तरोताज़ा,
नया होता हूँ।

लो, वहीं पर बन गया है तीर्थ !

(1981)