तुका संगत तीन्हसे<ref>उसे</ref> कहिए,
जिनथे<ref>जिनसे</ref> दुख दुनाए ।
दुर्जन तेरा मू<ref>मुँह</ref> काला,
थीतो<ref>विद्यमान</ref> प्रेम घटाए ।।
भावार्थ :
मित्र की बड़ी मार्मिक परिभाषा प्रस्तुत करते हुए तुकाराम कहते हैं कि उचित संगत उसी की है, जिससे हमारे सुख में वृद्धि होती हो। कलमुँहे दुर्जन की संगति से हमारा रहा-सहा आनन्द भी समाप्त हो जाता है ।
शब्दार्थ
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