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तुम/मैं/वह और वह / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

तुम भी ठीक हो
मैं भी ठीक हूँ
वह भी ठीक है
फिर वह अकेला कौन है
जो कभी भी दीखता नहीं है ?
पर जिसके इशारे पर
हम सब ढाक के पत्ते की तरह
होते रहते हैं
वह आदमी
कभी क्या दीख सकेगा ?
हम कभी क्या एक हो सकेंगे ?