तुमकों टूटकर चाहें / राम लखारा ‘विपुल‘

छोड़कर जिन्दगी को जाएं तो कहां जाएं?
हमारी नियति है कि तुमकों टूटकर चाहें।

सीप सी आंख में ठहरे हुए सपने के लिए,
टूटकर ऐसे कि जैसे कोई टूटे तारा।
यह जमीं छोड़के मीठा कोई बादल बनकर
ज्यों कि अंबर को चूम लेता है सागर खारा।

ऐसे निखरें कि फिर से टुकड़े जुड़ नहीं पाएं
हमारी नियति है कि तुमकों टूटकर चाहें।

हमारी राह में मुश्किल भी स्वस्ति गान करे
तुम कलावे का कोई भाग्यशाली धागा हो।
रूप को कहते है दुनिया में अगर सोना तो
मेरे ऐ ! प्यार तुम उस सोने पे सुहागा हो।

तुमने गाया कि हमें हम भी तो तुमको गाएं
हमारी नियति है कि तुमकों टूटकर चाहें।

प्यार कहते उसे जो दिल के उजले कपड़ों पर
रेशमी धागों से टांकी हुई तुरपाई है।
चंद सांसें पढ़ी तो हमने इतना जाना है
जिंदगी मौत के रोगी की एक दवाई है।

जिंदा रहना है बोलो क्यों न दवाई खाएं
हमारी नियति है कि तुमकों टूटकर चाहें।

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