तुमने मुझको दरवाज़े से लौटाया है
वही दर्द मैंने इन गीतों में गाया है
तुमने ही पावस के दिन आवाज़ लगाई
पहले ही परिचय में कर ली प्रेम-सगाई
छूकर प्राणों से प्राणों को आग लगाई
आज अचानक स्वर में परिवर्तन आया है
तुमने ही अपनी उपलब्धि गँवाई हँसकर
गाते जैसे वैभव के दलदल में फँसकर
सुखिया कोसेगी तुमको अन्तर में बसकर
छूटेगा अब छल दृगों पर जो छाया है
14.07.1962