तुमसे अक्सर
बातौं-बातौं में
पूछता हूं-
" क्या तुम्हैं मुझसे प्यार है..?
तुम नि:शब्द हो जाती
अतीत के धवल पन्नों को
देखती हो
और मैं फ़िर एक बार
उस अतीत में पहुंच
खुद को खड़ा करने की
असफ़ल कोशिश करता हूं
उत्तर की
प्रतीक्षा में
अपने कल के लिये
एक धवल अतीत बनाता हूं मैं
और तुम कहती हो
अचानक
अब जाना होगा
सच हम अपने सपनों को
अतीत के धवल-पन्नों
उकेरें तो
बताओ..?
कैसा होगा ..?