तुमने मिलना तो अब दूभर !
मूक प्रतीक्षा में कितने युग बीत गये,
चिर प्यासी आँखों के बादल रीत गये,
- एकाकी जीवन के निर्जन
- पथ पर केवल पतझर-पतझर !
देख रहा हूँ, सभी अपरिचित और नये,
वे जाने-पहचाने सपने कहाँ गये ?
- ढूँढ़ चुका अविराम सजग
- कोना-कोना, जल-थल-अम्बर !