Last modified on 19 मार्च 2020, at 23:30

तुम्हारा इंतजार / मनीष मूंदड़ा

जीवन के उन क्षणो में
उन लम्हों में
जब सब कुछ
एकदम से बिखरता सा
नजर आता हैं
जी जान से सींचा हुआ पौधा
जब वक़्त की आँधियों के सामने
बेबस-सा नजर आता हैं
जब अपने ख़ुद के बुने सपने
उलझनों के जाल महसूस होते हैं
हवा के तेज थपेड़ों से
आशियाँ के तिनके एक-एक कर
बिखरने लगते हैं
लाचार, सहमी-सी आँखों में जब
अन्धेरों के साये घर करने लगते हैं
तब घबराया हुआ यह मन बस
तुम्हारा इंतजार करता हैं
यह जानते हुए भी
तुम्हारा वापस आना अब मुमकिन ही नहीं।