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तुम्हारा नचिकेता / सुभाष राय

ओ मेरे पिता! तुम्हारा अंश हूँ मैं सम्पूर्ण
माँ के गर्भ में रचा तुमने मुझे अपने लहू से

तुमसे मुक्त कैसे हो पाऊँगा कभी
कैसे वापस लौटा सकूँगा तुझे
उसका अंश भी जो तुमने दिया है मुझे

जो करुणा और प्रेम पाता हूँ अपने भीतर
तुम्हारी सम्वेदना से सिंचित है वह
कैसे बिछड़ सकता हूँ मैं तुमसे, तुम्हारे आँसुओं से

तुम रहोगे मेरी आत्मा में ज्योति की तरह दीप्त
मेरी नसों में बहते हुए शताब्दियों के इतिहास की तरह
समय में ओझल वर्तमान की तरह
युग-युगों में फैले भविष्य की तरह

भले ही तुम्हारी हड्डियाँ
तुम्हारा बोझ उठाने से मना कर दें
तुम्हारा ह्रदय धड़कने से इनकार कर दे
भले ही तुम संसार को, उसके पार्थिवत्व को
किसी भी पल अस्वीकार कर दो
पर मैं तुम्हारा मूर्त स्वीकार हूँ
तुम्हारा पूर्ण प्राकट्य हूँ
मेरे भीतर तुम उपस्थित रहोगे
तब भी, जब नहीं होगे
किसी जागतिक दृश्य में

माँ ने तुम्हारी प्रतिकृति में
जो नवचैतन्य सौंपा था तुझे
उसकी प्रथम श्वास के साक्षी हो तुम
तुम्हारी बाँहों में अनन्त अन्धकार से मुक्ति पाई मैंने
अपनी अजस्र निश्छलता से
सींचकर तुमने मनुष्यत्व दिया मुझे
जब तक मनुष्य होगा, मैं हूँगा, तुम होगे

मैं जब कभी हताश होता हूँ, थक जाता हूँ
अपने कन्धे पर महसूस करता हूँ तुम्हारे खुरदरे हाथ
और निकल आता हूँ नैराश्य के विकट व्यूह से
जीवन का पहिया हाथों में सम्हाले
युद्ध को तत्पर अभिमन्यु की तरह

जब कभी आत्मीय प्रवँचनाएँ घेरतीं हैं मुझे
तुम्ही मृत्यु से सम्वाद करने की शक्ति सौंपते हो
और मैं नचिकेता हो जाता हूँ

जब कभी संशय में होता हूँ समरभूमि के बीच
लड़ूँ या मुक्ति पा लूँ रण से
सँघर्ष और कर्तव्य के सम्बन्धों को
समझने में असमर्थ हो जाता हूँ पूरी तरह
मेरे भीतर से निकलकर सामने आ जाते हो
मेरा अर्जुन उठ खड़ा होता है गाण्डीव के साथ
याद आ जाता है आप्त वाक्य — मामनुस्मर युद्ध च

बेशक तुम कुछ नहीं चाहते मुझसे
पर मैं देता हूँ वचन, तुम्हें आहत नहीं करूँगा
दुख नहीं दूँगा कभी
बना रहूँगा तुम्हारा अभिमन्यु
तुम्हारा नचिकेता, तुम्हारा अर्जुन