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तुम्हारा रुप / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

बहुत दूर
जहाँ मेरी आँखें असमर्थ हो जाती हैं
कुछ देखने में
जहाँ कि सचमुच
कुछ दिखाई नहीं देती
वहाँ
भोर की टटकी ओस में नहाये
कल्पद्रुम के अकेले कुसुम सा
तुम्हारा रुप
दिखाई देता है।