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तुम्हारा समय है यह / कर्मानंद आर्य

रात अँधेरी है
मुर्दों पर मिट्टी डाल दो
वे उठेंगे नहीं
आप उन्हें कितना भी समझा लो
उन्हें समझ में नहीं आएगा
साल में दो बार नहीं आता आमों पर बौर
बसंत एक बार चला जाए तो लौटता नहीं
उन्हें याद मत दिलाओ
बसन्त वाले दिन
नमक मिर्च के साथ हरे आमों वाले आम
फूलों वाली तितली
विचार भी नमकीन हो सकते हैं
उन्हें मत बताओ
हल्की बारिस, गुनगुनाती धूप
मन के भीतर भी होती है
उन्हें यह एहसास मत दिलाओ
वे क्या जाने यातनाओं के कुछ साल की कीमत
यह उनके लिए मायने नहीं रखता है
सनसनी भी उन्हें प्रभावित नहीं करती है
वे एकान्तिक जी रहे हैं
उन्हें अकेलेपन में जीने दो
उनके लिए शोषण क्या
पराधीनता और परावलंबन क्या
उनके लिए आग का कोई मतलब नहीं
वे भूख को मार चुके हैं
आत्मा दरक चुकी है
चमचमाता सूरज उनके लिए कोई अर्थ नहीं रखता
उन्हें कसम मत खिलाओ
मुर्दों पर मिट्टी डाल दो
वे बिलों में छुपे हुए चूहे नहीं हैं
जो पानी भरते ही बाहर निकल आयेंगे
उन्हें यथास्थितिवादी बनाकर छोड़ दो
उन्हें हुरपेटो मत
समय उनका नहीं
तुम्हारा है