घुँडियों के मुँह लगाते ही
लगा मुझे
सारा सुख यहीं है
उमस
आँधी
और लू के थपेड़े
या ओलावृष्टि की मार
कुछ नहीं कर सकती मेरा
तुम्हारी गोद मे मुझे डर कैसा
मैं चूँध तृप्त होता हूं
चूँध तृप्त होता है जगत
तुम्हारी छातियों में
क्षीर-सागर है माँ !
अनुवाद : नीरज दइया