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तुम्हारी चाँदनी / ओमप्रकाश सारस्वत

उनमें तुम्हारी चांदनी
और धूप बस गई,
हमको हमारे रात-दिन
शामो-सुब्ह कबूल

तुम आइनों की सीख से
उनके लिए सजो,


ज्यादती कबूल

तुम जिनके जीने की
वजह बनो, बने रहो,

हमको गिने-चुने से पल भी
बाअदब कबूल
यहां कौन किसकी सीपियों का,
मोती हो सका
यहां कौन किसको उम्र भर
क्यों हो सका कबूल ?