Last modified on 1 अप्रैल 2014, at 16:26

तुम्हारी छाया में / भवानीप्रसाद मिश्र

जीवन की ऊष्मा की
याद भी बनी है जब तक
तब तक मैं
घुटने में सिर डालकर
नहीं बैठूँगा सिकुड़ा–सिकुड़ा

भाई मरण
तुम आ सकते हो
चार चरण
छलाँगें भरते मेरे कमरे में

मैं ताकूँगा नहीं
तुम्हारी तरफ़ डरते–डरते
आँकूँगा
जीवन की नयी कोई छाँव
तुम्हारी छाया में!