वही आँखें
वही भौंहें
वही चेहरा
देवदारु -सी
ऊँची आकृति
जिसे देखने के लिए
मुझे अपनी
झुकी पलकों में
भीगी आँखों को
आकाश तक
उठाना पड़ता है
मेरी उदासी को देख कर
जिसका गमगीन हो जाना
रातों को मेरे हाथों में
हाथ थामे
समन्दर से सहरा की
सुनहरी मिट्टी का
कण -कण भर लाना
मुट्ठियों में
एहसास तो वही है
बस यह तुम नहीं
मेरे साथ
तुम्हारी परछाईं है।