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तुम्हारी
प्रफुल्ल कोमलता ने
मुझे व्याकुल किया
थोड़ा-सा
क्यों
उदास बातें
करती हो तुम
तब
जब
तुम्हारी आँखें
चमकती हैं
ऎसे
जैसे
भरे-पूरे दिन में
जले मोमबत्ती
भरे-पूरे दिन में
वहाँ दूर
बहुत दूर तक
मिलन की स्मॄतियाँ
झुके हुए कंधे
और एक आँसू
जो
इस कोमलता को
तुम्हारी
और बढ़ाता है
(रचनाकाल : 1909)