जब याद तुम्हारी आती है,
वेदना तार पर अन्तर के प्रिय मधुर, करुण कुछ गाती है!
आँखों में तब लहरी चंचल
उठती प्रतिपल, गिरती प्रतिपल!
बस मैं दोनों की सुन्दरता
चुप-चुप देखा करता केवल!
प्रतिदिन रे मेरी सिसक-सिसक बुलबुल पगली सो जाती है!
जाता कर हृदय शून्य, दृगभर
मेरे इस जीवन का जलना!
है चाह रहा शीतल होना
प्रिय आँसू का त्योहार मना!
उस पार क्षितिज से जीवन के रह-रह ध्वनि मधुर सुनाती है!
(24.4.49)