शाम को ढलना है
ढलती है
ढलती है शाम
सड़क सोती है
रात होती है।
रात होना
रोज़ का एक सच है,
सड़क का सोना
उसकी मजबूरी।
मेरी मजबूरी है
मेरे प्रिय का दूर देश से
संकेत करता हाथ
और मेरे हाथों में है एक टूटन
मन को दाग़ने वाली आग
और
आँखों में सूनापन
धीरे-धीरे टूटता है मन का कोई कोना
और आँखों से बहती नदी
मेरे ही शरीर को धोती है
पर
कोई मुझे यह तो बताए
फिर यह रात भी
मेरे साथ क्यों रोती है?