दुनिया में कहीं नहीं देखीं
इतनी सुन्दर आँखें,
ज्यों देख रहा हूँ पहली बार
जीवन उनमें से झाँके ।
ये स्वर्ग-प्रकाश के तारे हैं,
जिन्हें अपनी आत्मा से देखूँ
सुबह भोर की ओस से गीली,
स्वर्ण धूप किरण-सा लेखूँ ।
आँखें हैं या फूल वसन्ती,
यह मैं समझ न पाऊँ
इन आल्प-झीलों की गहराई में
मैं काँपूँ और डूब जाऊँ ।
रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय