फूल बने हैं इस जीवन के खार तुम्हारे आने से
मैंने पाया है जीवन में प्यार तुम्हारे आने से
कल तक मेरे इस जीवन में रंग, उमंग नहीं थे ज्यों
जीवन था पर लक्ष्य नहीं था, था न पता जीते हैं क्यों
सूरज के जैसा उगता था और रात सो जाता था
उलझा कामों में रहता था ज्यों मशीन हो जाता था
मिल पाया है खुशियों को आधार तुम्हारे आने से
क्यों मंदिर, क्यों मस्जिद जाऊँ, क्यों गुरुद्वारा जाऊँ मैं
जो तुझको बाँहों में भरकर सतचित को पा जाऊँ मैं
प्रेम सदृश है भक्ति न दूजी कहते कान्हा मधुवन में
राधा-सा पाया है मैंने तुमको अपने जीवन में
सब ग्रंथों का पाया मैंने सार तुम्हारे आने से
अब तुमसे ही मेरी खुशियां, मेरा सारा जीवन है
तुम दीवाली की संध्या हो, तुमसे आँगन रौशन है
मुझको जीवन के अंतिम क्षण तक तेरा रह जाना है
तुमको पाकर इस दुनिया में मुझको क्या अब पाना है
सच पूछे तो पाया है संसार तुम्हारे आने से
रचनाकाल- 10 फरवरी 2018