Last modified on 13 जुलाई 2015, at 17:59

तुम्हारे जैसा कोई नहीं... / लोकमित्र गौतम

तुम्हारे जैसा कोई और नहीं है
मैं जानता हूं
जब मैं यह कहूंगा तो तुम
चौंकोगी नहीं
तुम्हारे रोयें भी नहीं खड़े होंगे
सोचोगी
यह तो हर कोई कहता है
मगर यकीन मानो
मैं यह इसलिये नहीं कह रहा
क्योंकि यह हर कोई कह रहा है
या ऐसा कहने का रिवाज है
मैं ऐसा इसलिये कह रहा हूं
क्योंकि मैं इस सच का राजदार हूं
यकीनन कुछ सच सनातन होते हैं
वुफछ एहसास
कालजयी, कालातीत होते हैं
उन पर वक्त की धूल नहीं जमती
वक्त की धूप उन्हें धूमिल नहीं करती
तुम वही सच हो
तुम वही एहसास हो
सबसे जुदा
सबसे खास
विकल्पों से भरी इस दुनिया में
सचमुच तुम्हारा विकल्प नहीं है
मैंने इस पर बहुत सोचा है कि कुदरत ने दुनिया को
सिर्फ सात सुर ही क्यों बख्शे हैं?
दरअसल बाकी सब उसने अपने पास रख लिये हैं
ताकि दुनिया को नचाने की आखिरी धुन
सिर्फ वही बना सके
ताकि जब वह छेड़े अपनी रागिनी
दुनिया कुछ समझे
कुछ न समझे
कुछ जाने
कुछ अनुमाने
तुम कुदरत के बचाकर रखे गये
उन्हीं सुरों की सिम्पफनी हो
तुम्हारे जैसा कोई और नहीं है
तुम्हारे गूंज की हद
अनहद के भी परे है