फैल रहा है
शहर का वजूद
गाँव सिकुड़ रहे हैं
सीमेंट की चादर के नीचे
दब रही है मिट्टी की ख़ुशबू
इसी शहर में मज़दूर बने
मेरे देश के सुदूर ग्रामीण लोग
सड़ रहा है गेंहूँ
पिज़ा का हो रहा है विस्तार
छोड़ो गेंहुयाँ रंग
गोरा होने का क्रीम लगाओ
खान, बच्चन, तेंदुलकर ...
पानी पर नहीं सोचते
पेप्सी-कोला की
दे रहे हैं सलाह
लस्सी, छाछ में क्या रखा है ?
गुड़ नही अब कैड्बेरी है
मेहमानों के स्वागत में
असली और सम्पूर्ण पुरुष बनने के लिए
पहले रेमण्ड पहनिए
बापू ने तो गुज़ार दी पूरी ज़िन्दगी
घुटनों तक धोती में ...
भूखे रहो
किन्तु फ़ोन खरीदो
सरकार भी बाँट रही है
ग़रीबों को लैपटाप
भोजन–पानी और सुरक्षा
अब यहीं सर्च करो
तुम्हारे फैलाए बाज़ार में
रोज़ लुट रहा है
आम जन
सपने देखना अपराध नही
किन्तु सपने दिखा कर लूटना
बहुत संगीन जुर्म है
और जुर्म निरन्तर जारी है
मेरे इस ग़रीब देश में ....