तुम्हारे वक्ष-कक्ष में
जो होती सुलह-वार्त्ताएँ
इजरायल-फ़िलिस्तीन की
भारत-पाकिस्तान की
इराक-अमरीका की
हठी सरकारों और उग्र पृथकतावादियों की
तुम्हारी छाती के अन्दर
है जो एक गोल मेज़, उसके चौगिर्द बैठ
जो वहाँ होती संधि-वार्त्ताएँ
ज़रूर सफल होतीं
झगड़े सलट जाते अदेर
कट्टर दुश्मन गहरे दोस्त बनकर ही उठते
शान्ति-वार्ताओं के लिए
जगह नहीं इस धरती पर कोई और
शुभाशा के वायुमंडल से भरे तुम्हारे वक्ष-कक्ष से बढ़ कर-
जानता नहीं कोई यह मुझ से ज़्यादा-
कि जिसकी चौखट पर
टिकाते ही अशांत माथा
नींद में निर्भार होने लगती है देह
एक शिशु हथेली मन की स्लेट से पोंछने लगती है आग के आखर