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तुम्हारे शहर की बस / नवनीत शर्मा

यह बस तुम्‍हारे शहर से आई है
ड्राइवर के माथे पर
पहुँचने की खुशी
थके हुए इंजन की आवाज
धूल से आंख मलते
खिड़कियों के शीशे
सबने यही कहा
दूर बहुत ही दूर है तुम्‍हारा शहर
यह बस देखती है
तुम्‍हारे शहर का सवेरा
मेरे गाँव की साँझ
सवाल पूछता है मन
क्‍या तुम्‍हारा शहर भी उदास होता है
जब कभी पहुँचती है
मेरे गाँव का सवेरा लेकर
तुम्‍हारे शहर की शाम में कोई बस
थकी-माँदी।