तुम्हारे शहर में
आज भी मै
इन पगडंडियों पर
ढूंढती हूँ तुम्हारे क़दमों के निशान
ताकि रखकर अपनी कदमें उनपर
चल सकूं उसी धैर्य और सहनशीलता के साथ
पा सकूं तुम्हे अपने भीतर
जिन्हें भूल तुम नहीं लौटे कभी
इन पगडंडियों की ओर
किन्तु सूना है
तुम्हारे शहर में
संवेदनाओं को कहते हैं
नाटक
इसीलिए शायद वहां होते हैं
उपरिपुल, राजमार्ग
नहीं होती पगडण्डीयां !