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तुम्हारे हाथ / अली सरदार जाफ़री


तुम्हारे नर्म, हसीं, दिल-नवाज़ हाथ नहीं
महक रहे हैं मिरे हाथ में बहार के हाथ
मचल रही हैं हथेली में उँगलियों की लवें
तड़पती नब्ज़ कहे जा रही है प्यार की बात
पिघल रही है रुख़े-आतशी<ref>तमतमाता हुआ चेहरा </ref> पे हिज्र <ref>विछोह</ref> की शाम
निकल रही है सियह ज़ुल्फ़ से विसाल की रात

शब्दार्थ
<references/>