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तुम्हीं थी / शिवदेव शर्मा 'पथिक'

 तुम्हीं थी अन्तर्मन की साँस
 तुम्हीं थी विह्वल मन की आश
 तुम्हीं थी चंचल मन की धीर
 तुम्हीं बन बैठी हो उपहास

 तुम्हीं थी एक आत्मविश्वास
 तुम्हीं थी भावों का आकाश
 तुम्हीं थी चाहों का परिवेश
 तुम्हीं बन बैठी हो अभिशाप

 तुम्हीं को समझा था आराध्य
 तुम्हें पूजा पहना कर ताज
 तुम्हें था समझा आशीर्वाद
 तुम्हीं बन बैठी हो अपवाद