मैंने तुम्हें देखने के लिए
पुस्तकें हाथ में लीं और रखीं
मैंने तुम्हें देखने के लिए
अनेक अधबनी कविताएँ चखीं।
मैंने तुम्हें देखने के लिए
खिड़कियों के अधपट ढुलकाए
मित्रों को अनसुना किया
वायदों में झूठ बिखराए!
तुमने यह कुछ न किया
केवल अँगुलियों में लिपटते हुए
आँचल के कोने
कुतर खाए!!