तुम्हें पुकार रहा हिमगिरि से मैं जय का विश्वासी
जागो हे युग-युग से सोये, खोये भारतवासी!
जागो हे चपचाप चिता पर मरने के अभ्यासी
जागो हे जागरण-विभा से, डरने के अभ्यासी
जागो हे सिर झुका याचना करने के अभ्यासी
जागो हे सब कुछ सह, चुप्पी धरने के अभ्यासी
जागो हे छायी है जिनके मुख पर पीत उदासी
जागो हे जीवन-सुख-वंचित वीतराग सन्यासी!
तुम्हें जगाने को मैं अपनी छोड़ अमर छवि आया
अग्नि-किरीट पहन सुमनों की नगरी से रवि आया
यौवन का सन्देश लिए सुन्दरता का कवि आया
उद्धत शिखरों पर ज्यों नभ से टूट प्रबल पवि आया
जनता के जीवन में आया, मैं मधु-स्वप्न-विलासी
सिसक रही सुकुमार कल्पना, वह चरणों की दासी