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तुम्‍हारी ही तरह / प्रेमशंकर शुक्ल

तुम्‍हारी ही तरह
मेरे भीतर स्‍मृति की एक झील है
बड़ी झील !
देखो न मेरे भीतर ध्‍यान से
क्‍या-क्‍या नहीं लहरा रहा है
अपने-अपने राग में

और क्‍या-क्‍या नहीं जल रहा है
अपनी-अपनी आग में !
 

अपनी नीली तरलता में

अपनी नीली तरलता में
आकाश लहरा रहा है
हरीतिमा में हँस रही है
धरती

अल्लसुबह तुम्‍हारे पानी में नहाकर
खेलने निकली है हवा

बड़ी झील !
एक दुख कहने आया था
तुम से
पर लख यह सब
बरबस ही फूट पड़ा सुख
मेरे मुख से !