Last modified on 6 फ़रवरी 2014, at 17:19

तुम / उमा अर्पिता

जब पहली बार तुम्हें
देखा, तभी
दिल ने
तुम्हारी आँखों से
एक कभी न टूटने वाला
रिश्ता कायम कर लिया था
और मैं
तुम्हारे सीपियों-से नयनों को
चित्रलिखित-सी
देखती रह गयी थी....!
अनजाने...
मेरी भावनाओं के धरातल पर तुम
प्यार भरी बरसात बन बरस पड़े
तुम्हारे स्नेह से सिक्त होकर
मेरे हृदय-भू पर
काव्य के
अनगिनत अंकुर फूट पड़े
और मन पिघलकर
अप्राप्य दिशाओं की ओर बह चला
आज जब मैं
गीतों के राजमहल में
रानी बनी/इठलाती फिरती हूँ,
तुम मेरे समक्ष
छंदों के राजकुमार बन
आ खड़े होते हो...!