तुम आती हो
जल उठता है शाम का दिया
दिन होने की ज़रूरत नहीं होती
मेरा वश चले तो
सूरज को रख दूँ किसी ताखे पर
और भूल जाऊँ हमेशा के लिए
ताकि झाड़-पोंछ कर रोज़ तुम्हें
उसे बाहर निकालने की ज़रूरत न पड़े
तुम आती हो
जल उठता है शाम का दिया
दिन होने की ज़रूरत नहीं होती
मेरा वश चले तो
सूरज को रख दूँ किसी ताखे पर
और भूल जाऊँ हमेशा के लिए
ताकि झाड़-पोंछ कर रोज़ तुम्हें
उसे बाहर निकालने की ज़रूरत न पड़े