तुम आयी हो
तपती दुपहर में
आयी है भीगी हुई खस में से
ठण्डी हवा झोकें भर
जलते अंगों पर
करती चन्दन लेप।
सारी शाम
सूख कर झरता रहेगा
बदन से मेरे यह चन्दन
सारी शाम मेरी
रहेगी तुम से सुवासित।
(1987)
तुम आयी हो
तपती दुपहर में
आयी है भीगी हुई खस में से
ठण्डी हवा झोकें भर
जलते अंगों पर
करती चन्दन लेप।
सारी शाम
सूख कर झरता रहेगा
बदन से मेरे यह चन्दन
सारी शाम मेरी
रहेगी तुम से सुवासित।
(1987)