तुम कभी थे सूर्य लेकिन अब दियों तक आ गये।
थे कभी मुख्पृष्ठ पर अब हाशियों तक आ गये॥
यवनिका बदली कि सारा दृष्य बदला मंच का।
थे कभी दुल्हा स्वयं बारातियों तक आ गये॥
वक्त का पहिया किसे कुचले कहाँ कब क्या पता।
थे कभी रथवान अब बैसाखियों तक आ गये॥
देख ली सत्ता किसी वारांगना से कम नहीं।
जो कि अध्यादेश थे खुद अर्जियों तक आ गये॥
देश के संदर्भ में तुम बोल लेते खूब हो।
बात ध्वज की थी चलाई कुर्सियों तक आ गये॥
प्रेम के आख्यान में तुम आत्मा से थे चले।
घूम फिर कर देह की गोलाईयों तक आ गये॥
कुछ बिके आलोचकों की मानकर ही गीत को।
तुम ॠचाएं मानते थे गालियों तक आ गये॥
सभ्यता के पंथ पर यह आदमी की यात्रा।
देवताओं से शुरू की वहशियों तक आ गये॥