तुम कहते थे,
प्रेम की मिठास में एक कड़वाहट छिपी होती है।
मैं कड़वाहट को ही स्वादिष्ट मानने लगी
तुमने कहा,
चाँदनी रातों के बाद आने वाला कृष्ण पक्ष बहुत डराता है और मैंने चाँदनी आने के सारे द्वार बंद कर दिए
तुम ख़्वाब और हक़ीक़त के बीच का फ़र्क समझाते रहे।
मैंने सपने देखना ही छोड़ दिया
तुम प्रेम को मेरे पाँव-सा सुकोमल बताते थे जिसे यथार्थ का धरातल लहूलुहान कर देता है।
मैं सँभल-सँभल कर चलने लगी
और एक दिन
तुम मेरे पाँव के कंटक निकाल रहे थे
मेरा दर्द तुम्हारी आँखों में उतर आया था
प्रेम लहूलुहान था
पर मौजूद था
खिड़कियों से झाँकता चाँद
अपनी श्वेताभा लिए मेरे आँगन में उतर गया था
वो पल ख़्वाब से भी सुंदर था
जिस पल तुमने अपनी मिठास मुझमें भर कर कहा
प्रेम को बचाए रखना प्रेम होने से भी खूबसूरत है।