तुम कहो तो मैं तुम पर आज कोई गीत लिखूँ
मैंने लिक्खे हैं कई गीत फूलों-कलियों पर
मैंने लिक्खे हैं कई गीत इन तितलियों पर
मात खाने की तमन्ना सँजोये हूँ कब से
जीत के नगमें जुबाँ में पिराये हूँ कब से
हुस्न के कोरे-कोरे कागज पर इश्क की क्वाँरी-क्वाँरी थिरकन से
खुद की मैं हार लिखूँ या तुम्हारी जीत लिखूँ
मैंने निरखा है तुम्हें जब से इन बहारों में
मुस्कुराते हुए देखा है इन सितारों में
तुमको बस तुमको निहारा है और कुछ भी नहीं
हँस के झेला है तुम्हें सावनी फुहारों में
बिखरी-बिखरी न रहो, सिमटो और सो जाओ
लबों को रखके लबों पर मैं अमर प्रीत लिखूँ
तुम को तो मैं तुम पर आज कोई गीत लिखूँ