तुम चली जाती थीं। उसी में मैं भी। हम दोनों अस्थिर थे।
मैं तुम्हें रोक नहीं पाता था। तुम मुझे भेजकर ही रहती
थीं। मुझे भेजकर तुम काँपती थीं। जाकर, मैं भी।
लौटने के बाद भी हम काँपते थे। काँपना, बस काँपना ही
होता था, और कुछ भी नहीं। आते-जाते, जुदा होते-मिलते,
सोचते-लिखते हम काँपते थे, और इसे जानते थे।