तुम जो कंचन हो, मैं जो रजकन हूँ,
तुम जिसके तन हो, मैं उसका मन हूँ,
टुकड़े कर लो तुम, मेरे मुखड़े के
फिर भी देखोगे, मैं तो दर्पण हूँ ।
तुम जो कंचन हो, मैं जो रजकन हूँ,
तुम जिसके तन हो, मैं उसका मन हूँ,
टुकड़े कर लो तुम, मेरे मुखड़े के
फिर भी देखोगे, मैं तो दर्पण हूँ ।