मन पराग-केसर कुम्हलाए
तुम न आए
सुरभित सुमन, गूँज भँवरे की
मन में कितने फूल बिछाए
आम्र लताएँ, पिक की कुँजन
मन में मेरे मोर नचाए
रूप-कूक का मौसम जाए
तुम न आए
नीला व्योम, बोल चातक के
मन में मेरे आग लगाए
स्वाति-नक्षत्र सत्र प्राणों का
मन में मेरे राग जगाए
कबसे बैठे पलक बिछाए
तुम न आए
गूंगे दिन, कालिख रातों का
मन में मेरे रंज बढ़ाए
रिश्ता भूल गए बाती का
मन ने मेरे प्रश्न उठाए
नेह-छोह में पलक भिगाए
तुम न आए