अपने ही
अंदर से फूटती
कस्तूरी-गंध से
बेचैन होकर
भागी थी
तुम तक
किन्तु
तृष्णा से विकल हो
ख़त्म हो गई अन्ततः
क्योंकि वँहा सिर्फ़
मरीचिका थी
तुम न थे...।
अपने ही
अंदर से फूटती
कस्तूरी-गंध से
बेचैन होकर
भागी थी
तुम तक
किन्तु
तृष्णा से विकल हो
ख़त्म हो गई अन्ततः
क्योंकि वँहा सिर्फ़
मरीचिका थी
तुम न थे...।