Last modified on 1 मार्च 2009, at 15:11

तुम मत होना उदास / केशव

हवा का रुख देखकर
तुमने बदल लिया लिबास
मौसम की उसी राह से होकर
आऊँगा मैं
तुम मत होना उदास

वे भी शब्द थे
दूरियाँ लाँघते हिरण कुलाँचों से
लाये हमें एक दूसरे के पास

वे भी तो शब्द ही थे
वक्त की भट्ठी में तपकर
जो बने एहसास एक दूसरे से जोड़अ
किया अपने-अपने अकेलेपन से मुक्त

तभी तो
तभी तो दरों से निकल
हमें मिला विस्तार
संग की गंध से सराबोर
और वे भी तो शब्द ही थे
जिन्होंने मोड़ा हमें
हवनकुण्ड में प्रज्जवलित
अग्नि की ओर

फिर तोड़ा
तिनका
इन तिनकों को बीनकर
आऊँगा मैं
तुम मत होना उदास
मैं आऊँगा
उस वृक्ष की तरह
जिसने पतझर को स्वीकार
पल-पल की
तंग दरार से गुज़रते हुए
किया फिर से
कोंपल के फूटने का इंतज़ार

रात की स्याही में
उजाले की कलम डुबो
गीत लिखकर झरने का
आऊँगा मैं
तुम मत होना उदास