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तुम माँगते हो / शिवदेव शर्मा 'पथिक'

क्या गीत लिखूँ बरसातों पर
मनखेत तृषित, धनखेत शून्य
तुम गीत मांगते हो उससे
जिसके सौ-सौ साकेत शून्य?

उजरा राधा का वृन्दावन
पायल मीरा की टूट गई
ऐसे में गाए कौन गीत
मुरली मोहन की टूट गई!

कवि कलम उठा पथ हेर रहा
बारिश हो तब तो गीत बने
ममता-समता हो धरती पर
आंसू कोमल संगीत बने
पूरब धरती जल रही
गगन की बाढ़ निहारो मत भोले!
सर्वोदय आनेवाला है
तुम बना रहे फिर भी शोले?

गाएगी धरती सर्जन गीत
लहराना है धन खेतों को!
मानव-मानव को प्यार करे
बसना होगा साकेतों को!
सूरज के घर में हो प्रकाश
बादल के मन में गीत भरे
यह दीप जला जो आँधी से
रिमझिम में इसकी लौ बिखड़े।