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तुम मूर्ख बने रहना / मुनीश्वरलाल चिन्तामणि

मेरे भाई भोलेराम, तुम मूर्ख बने रहना,
कल्याण इसी में है तुम्हारा ।
सच मानो बड़ी मस्ती है मूर्खता में,
कुछ रखा नहीं है विद्वता में ।
अरे, बुद्धिमान तो बड़ी गलतियाँ करते हैं ।
मूर्ख तो मूर्खता से लाभ उठाया करते हैं ।
बुद्धिमानों का शोषण मूर्ख ही तो करते हैं ।
मेरे भाई भोलेरम, याद रखना,
सिवाय मूर्ख के कोई सही नहीं होता ।
मेरे भाई भोलेराम, तुम मूर्ख बने रहना –
कल्याण इसी में है तुम्हारा ।


बुद्धिमान इसलिए बुद्धिमान है
कि वह अपनी मूर्खताएँ छिपा लेता है ।
मूर्ख इसलिए मूर्ख है
कि वह अपनी मूर्खताएँ प्रकट कर देता है ।
वैसे बुद्धिमान भी कम मूर्ख नहीं होता
और मूर्ख कम बुद्धिमान नहीं ।


संसार में जितने झगड़े हुए हैं
वे सब बुद्धिमानों के फैलाये हुए हैं ।
भाईचारा, प्रेम, परोपकार तो मूर्खों के गुण हैं ।

मूर्खों में जाति-पाँति का भेद-भाव नहीं;
भाषा-मज़हब को लेकर तनाव नहीं ।
ये मूर्ख ठगे जाकर;

ये मूर्ख खुद दर्द सहकर,
उपहास का पात्र बनकर
ग़म तो खाये जाते हैं ।
यदि मूरख भाई "भोला" है;
तो बुद्धिमान भाई "भाला" है ।
यदि मूरख खरी बात सुनाता है

तो बुद्धिमान खोटी बात सुनाता है ।
यदि बुद्धिमान धोखा देता है
तो मूरख धोखा खाता है ।
यदि बुद्धिमान विस्की पीता है
तो मूरख आँसू पीता है ।

मेरे भाई भोलेराम, तुम मूर्ख बने रहना,
कल्याण इसी में है तुम्हारा ।
अरे मूरखो, तुम्हें शत-शत प्रणाम है ।
सादगी, सुशीलता, साहस में तुम सबसे आगे होते हो ।
ईश्वर-भक्त, संत, परोपकारी जीव तो तुम्हीं होते हो ।
विनय की मूर्ति बिल्कुल भोले भण्डारी होते हो ।
आश्चर्य नहीं कि शेक्सपियर और कालीदास भी कभी मूर्ख हुआ करते थे ।
बुद्धिमानों का वे मनोरंजन किया करते थे ।
शेक्सपियर जहाँ घोड़ों की देखभाल करते;
वहाँ कालीदास जिस डाल पर बैठते थे उसी डाल को काटते थे ।

आज संसार इन मूर्खों के "भोलेपन" का कायल है ।
बुद्धिमानों के "भोलेपन" या धोखाधड़ी से घायल है ।
मेरे भाई भोलेराम, आज मुझ से यह भी सुन लो ।
मूर्ख लोग ही सच्चे पंडित होते हैं,
भाईचारे संगठन इन मूर्खों में होते हैं ।

एक पते की बात कहता हूँ;
तथाकथित
बुद्धिमानों का पत्ता काटने के लिए ।
एक मूर्ख दूसरे मूर्ख को प्रणाम कर लेता है ।
पर एक बुद्धिमान दूसरे बुद्धिमान को बदनाम कर देता है ।
मेरे भाई भोलेराम, तुम मूर्ख बने रहना,
कल्याण इसी में है तुम्हारा ।