तुम याद आए मुझे
जब कभी मैंने
स्वयं को
नितान्त अकेले पाया।
तुम तब भी मुझे
याद आए
जब मैं ख़लाओं में
अकेला फिरा
जब मैं लड़खड़ाया
सघन तिमिर में
मैंने तुम्हें वहाँ भी
याद किया
तुम याद आए मुझे
हर उस क्षण
जब मैंने
बसन्त और पतझर को
अकेले भोगा।
जब कभी मैं
डरा
सहमा
और टूटा
जीवन की कुरूपता से
तुम याद आए मुझे
वहाँ भी
और आज मैं
चकित
अनुत्तरित
लाजवाब
तुम्हारा मुँह ताक रहा
खड़ा हूँ
जब तुम कहते हो
मैंने तुम्हें याद नहीं किया।
(रचनाकाल: 2016)