Last modified on 17 नवम्बर 2019, at 17:41

तुम याद आते हो / रश्मि रेखा

तुम मेरे बचपन की यादों की तरह
तुम अन्धेरे में दीवार पर जलते
एक सौ वाट के दूधिया बल्ब की तरह
हज़ार-हज़ार परेशानियों के बीच
गांव की सड़क पर उगी नरम दूब की तरह
इन दिनों बेतरह आते हो याद

अपनी जड़ों से उखड़े आदमी का दर्द लिए
इन दिनों संगीत में ही बजती है मेरी ख़ामोशी
मैं गाना चाहती हूं अपनी तरह
पर मैं कैसे गा सकती हूँ
मैं रोना चाहती हूं अपने तरीके से
पर कैसे रो सकती हूँ

चमकते दाँतों के प्रदर्शनी के इस दौर में
मेरी मुस्कान पूस महीने की ओस की तरह
मेरी आँखों में ठहरी है मोनालिसा की तस्वीर
जीने और मरने की तमाम मुश्किलों के बीच
इन दिनों अक्सर याद आते हो
मारफ़ीन की सूई की तरह ।