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तुम लौट आना अपने गाँव /रवीन्द्र प्रभात

जब झूमे घटा घनघोर
और टूटकर बरस जाए
तुम लौट आना अपने गाँव
अलाप लेते हुए धानरोपनी गीतों का
कि थ्रेसर-ट्रेक्टर के पीछे खड़े बैल
तुम्हारा इन्तज़ार करते मिलेंगे
कि खेतों में दालानों में मिलेंगे
पेड़ होने के लिए करवट लेते बीज
अमृत लुटाती-
बागमती की मन्द-मन्द मुस्कराहट
माटी में लोटा-लोटाकर
मौसम की मानिंद
जवान होती लडकियाँ
पनपियायी लेकर प्रतीक्षारत घरनी
और गाते हुये नंग-धड़ंग बच्चे
"काल- कलवती-पीअर -धोती
मेघा सारे पानी दे .... ।"

जब किसी की कोमल आहट पाकर
मन का पोर-पोर झनझना जाए
और डराने लगे स्वप्न
तुम लौट आना अपने गाँव
कि नहीं मिलेंगे मायानगरी में
झाल-मजीरा / गीत-जोगीरा / सारंगा-
सदाबरीक्ष/ सोरठी- बिरज़ाभार / आल्हा -
उदल / कज़री आदि की गूँज
मिलेंगे तो बस -
भीड़ में गायब होते आदमी
गायब होती परम्पराएँ
पॉप की धुन पर
संगीत के नए-नए प्रयोग
हाथ का एकतारा छोड़कर
बंदूक उठा लेने को आतुर लोकगायक
वातानुकूलित कक्ष में बैठकर
मेघ का वर्णन करते कालीदास
और बाबा तुलसी गाते हुए
"चुम्मा-चुम्मा....।"

तुम लौट आना अपने गाँव
कि जैसे लौट आते हैं पंछी
अपने घोसले में
गोधूलि के वक़्त
मालिक के भय से / महाजन की धमकी से
बनिए के तकादों से
कब तक भागोगे
कि नहीं छोड़ते पंछी अपनी डाल
घोंसला गिर जाने के बावजूद भी....।

तुम लौट आना अपने गाँव
कि तुम्हारे भी लौटेंगे सुख के दिन
अनवरत जूझने के बाद
कि तुम भी करोगे अपनी अस्मिता की रक्षा
सदियों तक निर्विकार
जारी रखोगे लडाई
आख़िरी समय तक
मुस्तैद रहोगे हर मोर्चे पर
किसी न किसी
बेबस- लाचार की आँखों में
पुतलियों के नीचे रक्तिम रेखा बनकर....।

तुम लौट आना अपने गाँव
कि नहीं छोड़ती चीटियाँ
पहाडों पर चढ़ना
दम तोड़ने की हद तक।